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ये है ईद और बकरीद का संदेश

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टीम हिन्दी

इस्लाम धर्म में दो ईद मनाई जाती है. पहली मीठी ईद जिसे रमज़ान महीने की आखिरी रात के बाद मनाया जाता है. दूसरी, रमज़ान महीने के 70 दिन बाद मनाई जाती है, इसे बकरीद कहते हैं, जिसे कुर्रबानी की ईद माना जाता है. पहली मीठी ईद जिसे ईद-उल-फितर कहा जाता है और दूसरी को ईद-उल-अजहा कहा जाता है.

पवित्र कुरान के मुताबिक, रजमान के पाक महीने में रोजे रखने के बाद अल्लाह इस दिन अपने बंदों को बख्सीश और इनाम देता है. इसलिए इस दिन को ईद कहते है. पूरे विश्व में ईद की खुशी पूरे धूमधाम से मनाई जाती है. पहली ईद-उल-फितर पैगंबर मुहम्मद ने सन 624 ईस्वी में जंग-ए-बदर के बाद मनाया था. पैगंबर हजरत मुहम्मद ने बद्र के युद्द में विजय प्राप्त की थी. उनके विजय होने की खुशी में यह त्यौहार मनाया जाता है.

इस दिन घरों में खास तौर पर किमामी सेवइयां, शीर और दूध वाली सेवइयां बनाई जाती हैं. इन्हें एक-दूसरे के घरों में बांटा जाता है. बच्चों को ईदी या तोहफे दिए जाते हैं. नए-नए कपड़े पहनें जाते हैं. वहीं, रोज़ेदार मस्जिद जाकर ईद की नमाज़ अदा करते हैं. ईद-उल-फितर एक रूहानी महीने में कड़ी आजमाइश के बाद रोजेदार को अल्लाह की तरफ से मिलने वाला रूहानी इनाम है. ईद समाजी तालमेल और मोहब्बत का मजबूत धागा है, यह त्योहार इस्लाम धर्म की परंपराओं का आईना है. एक रोजेदार के लिए इसकी अहमियत का अंदाजा अल्लाह के प्रति उसकी कृतज्ञता से लगाया जा सकता है.

मुसलमान ईद के दिन खुदा का शुक्रिया अदा करते है कि उन्होंने महीने भर उपवास रखने की ताकत दी. ईद पर एक खास रकम जिसे जकात कहते हैं जो गरीबों और जरूरतमंदों के लिए निकाल दी जाती है. नमाज के बाद परिवार में सभी लोगों का फितरा दिया जाता है, जिसमें 2 किलो ऐसी चीज दी जाती है जो प्रतिदिन रखने की हो.

इस्लामिक कैलेंडर के मुताबिक 12वें महीने धू-अल-हिज्जा की 10 तारीख को बकरीद मनाई जाती है. यह तारीख रमजान के पवित्र महीने के खत्म होने के लगभग 70 दिनों के बाद आती है. भारत में जिस त्योहार को बकरीद के नाम से जाना जाता है दरअसल वो ईद-उल-अज़हा या ईद-उज़-जुहा कहलाता है. अज़हा या जुहा का अर्थ है सुबह का वक्त यानी सूरज चढ़ने से सूरज के ढलने के बीच का समय. ये त्योहार अरबी महीने ज़िलहिज्जा की दसवीं तारीख को मनाया जाता है.

इसी महीने में मुसलमान हज करने मक्का की यात्रा पर जाते हैं. यूं तो क़ुर्बानी के लिए कोई चौपाया (चार पैरों वाला) कुर्बान करने की परंपरा रही है लेकिन भारत में इसे बकरे से जोड़कर देखा जाता है और इसको बकरी-ईद या बकरीद कहा जाता है.

बकरीद के त्योहार में अपनी हैसियत के मुताबिक किसी जानवर की क़ुर्बानी देने की परंपरा रही है. आज भी पूरी दुनिया के मुसलमान हैसियत के मुताबिक हलाल जानवर खरीदते हैं और अपने रब की खुशी के लिए उसको कुर्बान करते हैं. इस क़ुर्बानी का मकसद ये कतई नहीं है कि अल्लाह को खून या गोश्त पसंद है या उसे इसकी जरूरत है बल्कि इसका मकसद ये है कि हर इंसान अपने जान-माल को अपने रब की अमानत समझे और उसकी रजा के लिए किसी भी त्याग या बलिदान के लिए तैयार रहे. क़ुर्बानी तो जानवर की होती है लेकिन इससे जो शिक्षा मिलती है उस पर ध्यान देने की जरूरत है. इस त्योहार का एक पैगाम ये भी है कि हम अपने चरित्र को बुराइयों से पाक करें. मन को साफ करें और दुनिया को एक बेहतरीन जगह बनाएं.

Yeh hai eid aur bakra eid ka sandesh

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