जितना ही आम इस फल का नाम है, उतना ही खास फल है यह आम। काफी रसीला और मीठा फल आम जिसे फलों का राजा भी कहा जाता है दिन पर दिन फलों में हर किसी की पहली पसंद बनता जा रहा है। आज के समय में तो हरेक आम इंसान के मन में भी कोई न कोई किस्सा आम को लेकर जरूर होगा। फिर वो चाहे बचपन में पेड़ से आम तोड़ने की कोशिश में गिरना हो या बगीचे से आम चोरी में पकड़ा जाना। चाहे दाल को स्वादिष्ट बनाने वाली खटाई की चर्चा हो, या हो चाहे स्वादिष्ट-मीठे अंबा पापड़ की चर्चा। आम किसी न किसी रूप में हर किसी की जिंदगी में शामिल रहता है।
संस्कृत भाषा में आम को आम्रः कहा जाता है, इसी से हिन्दी, मराठी, बंगाली, मैथिली आदि भाषाओं में इसका नाम ‘आम’ पड़ गया। मलयालम में इसका नाम मान्न है। पुर्तगाली लोग इसे मांगा कहते हैं। यूरोपीय भाषाओं में इसका नाम 1510 में पहली बार इटली भाषा में लिया गया। इसके बाद इटली भाषा से अनुवाद के दौरान ही यह फ्रांसीसी भाषा में आया और उससे होते हुए अंग्रेजी में आया, लेकिन अंत में ‘ओ’ का उच्चारण अभी तक स्पष्ट नहीं है कि यह कैसे आया। अतः यह कहा जा सकता है कि इन सभी भाषाओं ने मलयालम भाषा से इस शब्द को लिया।
कालिदास ने आम का गुणगान किया है, सिकंदर ने इसे सराहा और मुग़ल सम्राट अकबर ने दरभंगा में इसके एक लाख पौधे लगाए। उस बाग़ को आज भी लाखी बाग़ के नाम से जाना जाता है। वेदों में आम को विलास का प्रतीक कहा गया है। कविताओं में इसका ज़िक्र हुआ और कलाकारों ने इसे अपने कैनवास पर उतारा।
आम पूरी तरह भारतीय मूल का है। कहा जाता है कि चौथी-पांचवी सदी में बौद्ध धर्म प्रचारकों के साथ भारत से आम मलेशिया और पूर्वी एशिया के देशों तक पहुंचा। आम भारत का राष्ट्रीय फल भी है। पारसी लोग 10वीं सदी में आम को पूर्वी अफ्रीका ले गए। पुर्तगाली 16वीं सदी में इसे ब्राजील ले गए, वहां से यह वेस्टइंडीज और मैक्सिको पहुंच गया। अमेरिका में आम वर्ष 1861 में पहली बार उगाया गया। यूरोप में सबसे अधिक आम स्पेन में होता है, यहां का आम तीखी खुशबू लिए होता है।
भारत में उगायी जाने वाली आम की किस्मों में दशहरी, लंगड़ा, चौसा, फज़ली, बम्बई ग्रीन, बम्बई, अलफ़ॉन्ज़ो, बैंगन पल्ली, हिम सागर, केशर, किशन भोग, मलगोवा, नीलम, सुर्वन रेखा, वनराज, जरदालू प्रमुख है।
लखनऊ के शायर सुहैल काकोरवी ने तो आम पर शायरी की पूरी किताब ही ‘आमनामा’ लिख दी, जिसे लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड में दर्ज किया गया। लखनऊ के इतिहासकार और गीतकार योगेश प्रवीन बताते हैं, ‘आम की जो मशहूर किस्मे हैं, उन्हें वहीं का नाम दे दिया गया, जहां उसका पेड़ पहली बार उगा या नजर में आया। दशहरी को यह नाम काकोरी के पास दशहरी गांव की वजह से मिला। कहा जाता है कि दशहरी आम का पेड़ सबसे पहले यहीं हुआ।
इसी तरह मलीहाबाद में ही विकसित हुई आम की लोकप्रिय नस्ल चौसा का नाम भी संडीला के पास स्थित एक गांव चौसा पर रखा गया।
लोकप्रिय लंगड़ा आम का प्रादुर्भाव बनारस से बताया जाता है। कहा जाता है बनारस के एक शिव मंदिर में एक साधु आम का पौधा लेकर आया था। उसे वहां के पुजारी को देकर उनकी सेवा करने को कहा। चूंकि मंदिर का पुजारी पैर से दिव्यांग था, इसलिए इस आम को लंगड़ा कहा जाने लगा। हालांकि कुछ लोग लंगड़ा की उत्पत्ति इलाहाबाद से भी मानते हैं।
इसी तरह बिहार में भागलपुर के एक गांव में फजली नाम की एक महिला के घर पैदा हुए आम की एक किस्म का नाम फजली पड़ गया।
शतपथ ब्राह्मण में आम की चर्चा इसकी वैदिक कालीन तथा अमरकोश में इसकी प्रशंसा इसकी बुद्धकालीन महत्ता के प्रमाण हैं। भारतवर्ष में आम से संबंधित अनेक लोकगीत, आख्यायिकाएँ आदि प्रचलित हैं और हमारी रीति, व्यवहार, हवन, यज्ञ, पूजा, कथा, त्योहार तथा सभी मंगलकार्यों में आम की लकड़ी, पत्ती, फूल अथवा एक न एक भाग प्राय: काम आता ही है।
आखिर राजा तो राजा ही होता है, उसकी तारीफ में हम कितने ही कसीदे पढ़ ले, लेकिन कहीं न कहीं थोड़ी तारीफ फिर भी बाकी रह ही जाएगी। इसी तरह फलों के राजा आम के बारे में भी है, जितना भी हम उसके बारे में लिख दें, कहीं न कहीं थोड़ी कमी फिर भी रह ही जाएगी।