भारत की अपनी अद्भुत काल गणना है। तदपि देश की युवा पीढ़ी विदेशी नववर्ष के मोह में पड़ कर भ्रमित हो रही है। घर के ख़ालिस सोने को छोड़कर विदेशी पीतल को सोना समझने की आदत को बदलना होगा। भारत की कालगणना सम्पूर्ण रूप से वैज्ञानिक है। जिसको अब पूरा विश्व समझ रहा है। आइये हम भी भारत भारत द्वारा विश्व को दी गई कालगणना को समझने की कोशिश करते हैं।
आज यानि 25 मार्च 2020 से आरम्भ होने वाला चैत्र शुक्ल प्रतिपदा का प्रमादी संवत्सर है। भारतीय काल गणना के अनुसार आज कलियुग को आरम्भ हुए 5121 वर्ष व्यतीत हो चुके हैं। अर्थात आज से कलयुग को 5122 वां साल लग रहा है जोकि हिन्दू नववर्ष के हिसाब से विक्रमी सम्वत 2077 है। अंग्रेजी कलेण्डर के हिसाब से अभी 2020 चल रहा है! जिसका साफ मतलब है कि कालगणना में हम पश्चिमी देशों से 57 साल आगे चल रहे हैं। भारतीय कालगणना सूर्य और चंद्रमा दोनों की गति पर आधारित है। सूर्य चन्द्रमा की गति के आधार पर गणितीय सूत्रों से अन्य ग्रहों की गति का ज्ञान भी कर लिया जाता है। अन्य ग्रहों की गति के आधार पर भविष्य में होने वाली घटनाओ का पहले ही आंकलन कर लिया जाता है! भारतीय पंचांग इसका प्रामाणिक आधार है!
अब तक प्रचलित कालज्ञान के आधार विश्व में समय गणना की सबसे छोटी इकाई सेकेंड और सबसे बड़ी इकाई मिलेनियम अर्थात् हजार वर्ष है। इनके मध्य डिकेड (दस वर्ष का समय), सेंचुरी (सौ वर्ष का समय) के द्वारा काल गणना प्रचलित हैं! इनके अतिरिक्त समय गणना की कोई भी इकाई दुनियां में किसी के पास उपलब्ध नहीं है। जबकि भारत में एक सेकेंड के 37,968 वें हिस्से को परमाणु कहा जाता है। एक दिन-रात में जहाँ 86,400 सेकेंड होते हैं, वहीं 3,280,500,000 परमाणु होते हैं। इस आधार पर भारत की कालगणना पद्धति में सौ वर्षों और हजार वर्षों की गणना बिलकुल आसान और सटीक हो जाती है!
भारत की काल गणना के अनुसार 4,32,000 वर्षों का कलयुग, 8,64,000 वर्षों का द्वापर युग, 12,96,000 वर्षों का त्रेतायुग व १७२८००० वर्ष का सतयुग था! इन चार युगों को मिलाकर चतुर्युग बनता है। 71 चतुर्युगी का एक मन्वंतर मनवन्तर अर्थात मनु की आयु! 14 मन्वंतर तथा संध्यांश के १५ सतयुग का एक कल्प यानी 4,32,0000,000 वर्ष! एक कल्प यानी ब्रह्मा का एक दिन, उतनी ही बड़ी उनकी रात! इस प्रकार १०० वर्ष ब्रह्मा की आयु। जब एक ब्रह्मा मरता है तो भगवान विष्णु का एक निमेष (पलक झपकने में लगे समय को निमेष कहते हैं) होता है और विष्णु के बाद रुद्र का काल आरम्भ होता है, जो स्वयं कालरूप है और अनंत है, इसीलिए उन्हें महाकाल कहा जाता है।