आज तक भिन्न-भिन्न युगों में हम नारियों के कई स्वरूप देखते आए हैं। कभी वो गौरी है, तो कभी काली है, कभी दुर्गा है, तो कभी भवानी है। इन दैवीय स्वरूपा नारियों का प्राचीन से लेकर अर्वाचीन काल तक अपने-अपने क्षेत्रों में योगदान अमूल्य रहा है।
यदि हम देखें, तो ‘भक्तिकाल’ की प्रसिद्ध कवयित्री व श्रीकृष्ण की परम भक्त ‘मीराबाई’ का योगदान भी साहित्य के क्षेत्र में कुछ कम नहीं है। कृष्णभक्ति से ओतप्रोत मीराबाई की पदावलियाँ आज भी शिक्षण संस्थानों में बच्चों को पढ़ाई जाती है। जो कि हिंदी साहित्य हेतु एक अनमोल धरोहर है।
भक्तिकाल के बाद बारी आती है, ‘आधुनिक काल’ की। और इस काल में पंजाबी की सबसे लोकप्रिय लेखिकाओं में से एक है- ‘अमृता प्रीतम’। अमृता को ‘पंजाबी भाषा’ की पहली कवयित्री भी माना जाता है। उन्हें अपनी पंजाबी कविता ‘अज्ज आखाँ वारिस शाह नूँ’ के लिए बहुत प्रसिद्धी प्राप्त हुई। इस कविता में भारत विभाजन के समय पंजाब में हुई भयानक घटनाओं का अत्यंत दुखद वर्णन है, जिसकी वजह से यह भारत और पाकिस्तान दोनों देशों में काफी सराही गयी।
नारी शक्ति कितनी महान होती है, वह अपने जीवन में क्या-क्या कर सकती है, इस बात का अंदाज़ा हम होलकर वंश की रानी ‘देवी अहिल्याबाई’ के जीवन से लगा सकते हैं। अहिल्याबाई अपने समय की एक ऐसी महान शासिका थी, जिन्होंने मात्र मालवा प्रांत में ही नहीं बल्कि पूरे भारत में सैकड़ों मंदिरों व धर्मशालाओं का निर्माण कराया। साथ ही ध्वस्त काशी विश्वनाथ मंदिर का पुनर्निर्माण भी कराया।
इनके सिवा, मध्य प्रदेश के रामगढ़ रियासत की महारानी, ‘वीरांगना अवंती बाई’ का नाम भी साल 1857 की क्रांति में स्वर्णाक्षरों में अंकित है। इनके बाद बारी आती है, ‘रानी दुर्गावती’ की, जो कि हमारे देश की एक ऐसी वीरांगना थी, जिसने अपने राज्य की रक्षा हेतु मुगलों से युद्ध करते हुए अपने प्राण तक न्योछावर कर दिए थे।
इसलिए तो कहा गया है-
“एक अकेली मीरा ने ही परब्रम्ह को पाया था,
एक अकेली दुर्गा ने वीरों में मान बढ़ाया था।”
यदि हम स्वातंत्र्य भारत की बात करें तो सबसे पहले हमारे दिमाग में भारत की पहली महिला प्रधानमंत्री ‘इंदिरा गाँधी’ का नाम आता है। अपने जीवन में इंदिरा गांधी ने तीन बार प्रधानमंत्री का पद संभाला। अपने दृढ़ निश्चय, साहस और निर्णय लेने की अद्भुत क्षमता के कारण उन्हें विश्व राजनीति में ‘लौह महिला’ के रूप में जाना जाता है। उन्होंने न केवल भारतीय राजनीति को नये आयाम दिये बल्कि विश्व राजनीति के क्षितिज पर भी वे एक युग बनकर छाई रहीं।
जहाँ हम राजनीति की बात कर रहे हैं, तो वहाँ भारत की दूसरी, पूर्व लोकसभा स्पीकर ‘सुमित्रा महाजन’ को हम कैसे भूल सकते हैं?
सुमित्रा ताई एक ऐसी शख्सियत है, जिन्हें राजनीति में उनके विशेष योगदान हेतु ‘पद्मभूषण’ से भी नवाज़ा जा चुका है। ताई आठ बार लोकसभा चुनाव जीतने वाली ‘प्रथम महिला सांसद’ है। बता दें कि, ताई ने इसी वर्ष, इंदौर में अपने आवास स्थल पर साहित्यप्रेमियों हेतु ‘निःशुल्क लाइब्रेरी’ व्यवस्था भी प्रारम्भ की है।
विश्व के सर्वोच्च पुरस्कार, नोबेल पुरस्कार को प्राप्त करने वाली महिलाओं की फेहरिस्त भी कम लंबी नहीं है। और जैसे ही नोबेल पुरस्कार की बात आती है तो सूची में सबसे पहला नाम आता है- ‘संत मदर टेरेसा’ का। ममता की मूर्ति, मदर टेरेसा का पूरा जीवन सेवा और त्याग की मिसाल रहा है। उन्होंने समाज के कमजोर सदस्यों की काफी देखभाल की, जिसमें कुष्ठ रोग से पीड़ित लोगों के लिए एक धर्मशाला और बेघर बच्चों के लिए आश्रय खोलना शामिल है। उनके इसी सेवाभाव को देखते हुए, साल 1979 में नोबेल के शांति पुरस्कार से उन्हें सम्मानित भी किया जा चुका है।
जहाँ शांति की, और नोबेल पुरस्कार की बात आती है, वहाँ सहसा ही ‘मलाला यूसुफजई’ हमें याद आती है। लड़कियों हेतु शिक्षा के अधिकार की लड़ाई लड़ने वाली साहसी मलाला को 2014 में नोबेल शांति पुरस्कार से अलंकृत किया जा चुका है। मलाला दुनिया की सबसे कम उम्र वाली नोबेल पुरस्कार प्राप्त विजेता है।
और भी ऐसी कई महान नारियां है जो अपने-अपने क्षेत्र में, हर दिन एक नई इबारत लिख रही है। चंद शब्दों में इन अद्भुत नारियों का बखान किसी भी तरह से संभव नहीं है। इसलिए आखिरी में, इन साहसी, पराक्रमी तथा अपने अदम्य शौर्य का परिचय देती विदुषी, वीरांगना नारियों को कोटि-कोटि नमन।
Nayi misaal kayam krti atulya bharat ki atulya nariya