निर्भया हत्याकांड के गुनहगार लगभग सात साल बाद अपने अंजाम पर पहुंच गए। निर्भया केस के चारों दोषियों को आज सुबह 5:30 बजे तिहाड़ जेल में फांसी पर लटका दिया गया। इस तरह हजारों कानूनी अड़चनों के बाद निर्भया को इन्साफ मिला। भारत में ऐसे केसों में त्वरित न्याय के लिए व्यस्वस्था होनी चाहिए ताकि इस तरह की मानसिकता वाले लोगों में भय रहे। तिहाड़ जेल में एक साथ चार लोगों को फांसी देने का यह पहला मामला है। तिहाड़ में फांसी दिए जाने के बाद ख़ुशी का माहौल था। लेकिन क्या आप जानते हैं 1857 की क्रांति के पुरोधा मंगल पांडे की फांसी ने लाखों भारतीयों को यह ख्वाब दिखाया कि अब उनकी गुलामी के दिन खत्म होने वाले हैं।
ज्यादातर लोग यही मानते है कि मेरठ की छावनी में सैनिकों द्वारा प्रयोग होने वाले कारतूसों में गाय और सुवर की चर्बी के होने के कारण 1857 का विद्रोह हुआ था। लेकिन बहुत कम लोग जानते हैं कि अंग्रेजों की कुटिलता के नाक नीचे बड़ी सुनियोजित तरीके से इस क्रान्ति की नींव रखी गई। इतिहासकार मेडली ने अपनी पुस्तक मैं लिखा है कि “वस्तुतः चर्बी से चिकने किये गए कारतूसों की बात ने तो केवल उस सुंरंग मैं अंगारमात्र लगाया था जिसका निर्माण अनेक कारणों द्वारा किया गया था।” इस क्रान्ति ने भारत में कौमिय एकता के बीज भी बोये। फिरंगी सेना की कलकत्ता बटालियन संख्या-19 को सबसे पहले इन कारतूसों का प्रयोग के लिए चुना गया। लेकिन उनके साफ़ मुकर जाने के कारण यह काम मेरठ की बैरकपुर की बटालियन 34 के सैनिकों को सौंप दिया। इस तरह मेरठ की धरती को अंग्रेजों के खिलाफ पहले विद्रोह की पटकथा लिखने के लिए इतिहास ने चुना।
बैरकपुर की छावनी का सिपाही मंगल पांडे जाति से पंडित लेकिन कर्मों से छत्रिय तेजस्वी व्यक्तित्व वाला युवा था। युवा होने के कारण उसका खून भी जल्दी उबलना लाजमी था। अपने सहचरों के साथ दुर्व्यवहार और स्वधर्म भ्रष्ट होने की दशा मैं अपनी तलवार को म्यान मैं नहीं रख पाया। “भाइयों अपनी स्वतंत्रता के लिए दुश्मनों पर टूट पड़ो कह कर बैरकपुर छावनी के परेड मैदान में दहाड़ने उठा। यह देखकर अंग्रेजी सार्जेंट ह्यूसन ने सिपाहियों को आदेश दिया कि मंगल पांडे को गिरफ्तार किया जाए। किन्तु हिन्दू-मुस्लिम सिपाही वर्षों से सीने में दबी आग को भड़कने के लिए चिंगारी का इंतज़ार कर रहे थे। और मंगल पांडे नाम की चिंगारी काम कर चुकी थी। वह चिंगारी अब शोला बनकर अंग्रेजों पर बरसने लगी। मंगल पांडे की बन्दूक से गोली निकली और ह्यूसन सीधे दूसरे लोक पधार गया। इतने मैं लेफ्टिनेंट बॉ एक घोड़े मैं सवार होकर आ धमका।मंगल पांडे की बन्दूक से एक और गोली निकली और घोड़े के पेट में समा गई। घोड़ा बॉ को लेकर धरती पर गिर पड़ा। बॉ ने अपनी पिस्तौल से गोली चलाई किन्तु मंगल पांडे बच गए। इस बार मंगल पांडे की तलवार चमकी और बॉ के प्राण पखेरू हो गए।
अकेले मंगल पांडे को लड़ता देखा अन्य सिपाहियों के भीतर दबी चिंगारी भी भड़क गई। गोलियों की आवाज अंग्रजी आला अधिकारियों के कानों तक पहुंची। कर्नल ह्वीलर वहां आया और मंगल पांडे को गिरफ्तार करने के आदेश देने लगा किन्तु सारे सिपाहियों ने गर्जना की हम अपने बह्रमण का बाल भी नहीं छुएंगे। बाजी अब हाथ से निकल चुकी थी कर्नल ह्वीलर अपनी जान बचा कर जनरल के बंगले की तरफ भागा! तत्कालीन जनरल हीर्से यूरोपीय सिपाहियों की की टुकड़ी लेकर मंगल पांडे की और बढ़ा। मंगल पांडे ज्यादा देर तक प्रतिकार नहीं कर पाए और अंग्रेजों के हाथों पकडे न जाने की सोचकर स्वयं को गोली मार ली! घायल अवस्था में उनको अस्पताल में भर्ती कराया गया। मंगल पांडे का कोर्ट-मार्शल किया गया। उनसे विद्रोह में शामिल लोगों के नाम बताने का दवाब डाला गया किन्तु मंगल पांडे ने मुंह नहीं खोला! मंगल पांडे को फांसी की सजा सुनाई गई।
8 अप्रैल 1857 को फांसी का दिन तय किया गया लेकिन भारतीय स्वतंत्रता की प्रथम आहुति मंगल पांडे को फांसी लगाने के लिए बैरकपुर व आसपास का कोई भी जल्लाद तैयार नहीं हुआ। अंत में हारकर अंग्रजी हुकूमत ने कोलकाता से चार जल्लाद बुलाए।
इस तरह से भारतीय स्वतंत्र संग्राम का पहली हुतात्मा ने स्वर्गारोहण किया। मंगल पांडे द्वारा फूंकी 1857 की क्रान्ति के बिगुल की गूंज पूरे भारत ने सुनी और उस नाद ने 1947 में जाकर आजाद भारत का उद्घोष किया।
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