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ॐ को ओम कहा जाता है. उसमें भी बोलते वक्त ‘ओ’ पर ज्यादा जोर होता है. इसे प्रणव मंत्र भी कहते हैं. इस मंत्र का प्रारंभ है अंत नहीं. यह ब्रह्मांड की अनाहत ध्वनि है. अनाहत अर्थात किसी भी प्रकार की टकराहट या दो चीजों या हाथों के संयोग के उत्पन्न ध्वनि नहीं. इसे अनहद भी कहते हैं. ओंकार ध्वनि के 100 से भी अधिक अर्थ दिए गए हैं. यह अनादि और अनंत तथा निर्वाण की अवस्था का प्रतीक है. ॐ को ओम लिखने की मजबूरी है अन्यथा तो यह ॐ ही है. अब आप ही सोचे इसे कैसे उच्चारित करें? ओम का यह चिन्ह ‘ॐ’ अद्भुत है. यह संपूर्ण ब्रह्मांड का प्रतीक है. बहुत-सी आकाश गंगाएँ इसी तरह फैली हुई है.
पतंजलि महाराज ने कहा हैः
तस्य वाचकः प्रणवः.‘परमात्मा का वाचक ॐकार है.’ (पातंजल योगदर्शन, समाधिपादः 27)
सब मंत्रों में ॐ राजा है. ॐकार अनहद नाद है. यह सहज में स्फुरित हो जाता है. अकार, उकार, मकार और अर्धतन्मात्रा युक्त ॐ एक ऐसा अदभुत भगवन्नाम-मंत्र है कि इस पर कई व्याख्याएँ हुईँ, कई ग्रंथ लिखे गये फिर भी इसकी महिमा हमने लिखी ऐसा दावा किसी ने नहीं किया. इस ॐकार के विषय में ज्ञानेश्वरी गीता में ज्ञानेश्वर महाराज ने कहा हैः
ॐ नमो जी आद्या वेदप्रतिपाद्या, जय जय स्वसंवेद्या आत्मरूपा.
परमात्मा का ॐकारस्वरूप से अभिवादन करके ज्ञानेश्वर महाराज ने ज्ञानेश्वरी गीता का प्रारम्भ किया.
धन्वंतरि महाराज लिखते हैं कि ॐ सबसे उत्कृष्ट मंत्र है. वेदव्यासजी महाराज कहते हैं कि मंत्राणां प्रणवः सेतुः. यह प्रणव मंत्र सारे मंत्रों का सेतु है.
क्या है ॐ (ओम) की शक्ति ?
ओ३म् (ॐ) नाम में हिन्दू, मुस्लिम या ईसाई जैसी कोई बात नहीं है. यह सोचना कि ओ३म् किसी एक धर्म की निशानी है, ठीक बात नहीं, अपितु यह तो तब से चला आया है जब कोई अलग धर्म ही नहीं बना था. बल्कि ओ३म् तो किसी ना किसी रूप में सभी मुख्य संस्कृतियों का प्रमुख भाग है. यह तो अच्छाई, शक्ति, ईश्वर भक्ति और आदर का प्रतीक है. उदाहरण के लिए अगर हिन्दू अपने सब मन्त्रों और भजनों में इसको शामिल करते हैं तो ईसाई और यहूदी भी इसके जैसे ही एक शब्द आमेन का प्रयोग धार्मिक सहमति दिखाने के लिए करते हैं. मुस्लिम इसको आमीन कह कर याद करते हैं, बौद्ध इसे ‘ओं मणिपद्मे हूं’ कह कर प्रयोग करते हैं. सिख मत भी इक ओंकार अर्थात एक ओ३म के गुण गाता है.
तपस्वी और ध्यानियों ने जब ध्यान की गहरी अवस्था में सुना की कोई एक ऐसी ध्वनि है जो लगातार सुनाई देती रहती है शरीर के भीतर भी और बाहर भी. हर कहीं, वही ध्वनि निरंतर जारी है और उसे सुनते रहने से मन और आत्मा शांति महसूस करती है तो उन्होंने उस ध्वनि को नाम दिया ओम. साधारण मनुष्य उस ध्वनि को सुन नहीं सकता, लेकिन जो भी ओम का उच्चारण करता रहता है उसके आसपास सकारात्मक ऊर्जा का विकास होने लगता है. फिर भी उस ध्वनि को सुनने के लिए तो पूर्णत: मौन और ध्यान में होना जरूरी है. जो भी उस ध्वनि को सुनने लगता है वह परमात्मा से सीधा जुड़ने लगता है. परमात्मा से जुड़ने का साधारण तरीका है ॐ का उच्चारण करते रहना.
मन पर नियन्त्रण करके शब्दों का उच्चारण करने की क्रिया को मन्त्र कहते है. मन्त्र विज्ञान का सबसे ज्यादा प्रभाव हमारे मन व तन पर पड़ता है. मन्त्र का जाप एक मानसिक क्रिया है. कहा जाता है कि जैसा रहेगा मन वैसा रहेगा तन. यानि यदि हम मानसिक रूप से स्वस्थ्य है तो हमारा शरीर भी स्वस्थ्य रहेगा. मन को स्वस्थ्य रखने के लिए मन्त्र का जाप करना आवश्यक है. ओम् तीन अक्षरों से बना है. अ, उ और म से निर्मित यह शब्द सर्व शक्तिमान है. जीवन जीने की शक्ति और संसार की चुनौतियों का सामना करने का अदम्य साहस देने वाले ओम् के उच्चारण करने मात्र से विभिन्न प्रकार की समस्याओं व व्याधियों का नाश होता है.
अध्यात्मशास्त्र का आधारभूत नियम कहता है कि, शब्द, स्पर्श, रूप, रस, गंध तथा उससे संबंधित शक्ति एकसाथ होती है. इसका अर्थ है कि जहां पर भी र्इश्वर का सांकेतिक रूप उपस्थित होता है, वहां उनकी शक्ति भी रहेगी. ऐसा माना जाता है कि टी-शर्ट अथवा बदन पर ॐ का चिन्ह होने से निम्नलिखित कष्टदायक अनुभव हो सकते हैं, जैसे, अतिअम्लता, शारीरिक तापमान में वृद्धि, व्याकुलता आदि.
U se hai adi or anant