प्रयागराज भारत के सबसे पुराने शहरों में से एक है. यह प्राचीन ग्रंथों में ‘प्रयाग’ या ‘तीर्थराज’ के नाम से जाना जाता है और इसे भारत के सबसे पवित्र तीर्थ स्थल माना जाता है. मान्यता अनुसार, यहां सृष्टिकर्ता ब्रह्मा ने सृष्टि कार्य पूर्ण होने के बाद प्रथम यज्ञ किया था. इसी प्रथम यज्ञ के प्र और याग अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और उस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा. इस पावन नगरी के अधिष्ठाता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहां वेणीमाधव रूप में विराजमान हैं. भगवान के यहां बारह स्वरूप विध्यमान हैं, जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है. महाकुंभ की चार स्थलियों में से एक है, शेष तीन हरिद्वार, उज्जैन एवं नासिक हैं.
हिन्दू धर्मग्रन्थों में वर्णित प्रयाग स्थल पवित्रतम नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है. यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है, अतः ये त्रिवेणी संगम कहलाता है, जहां प्रत्येक बारह वर्ष में कुंभ मेला लगता है. प्रयागराज में प्रत्येक छः वर्षों में कुंभ और प्रत्येक बारह वर्षों में महाकुंभ, इस धरती पर तीर्थयात्रियों का सबसे बड़ा आयोजन है.
ऐतिहासिक रूप से, प्रयागराज शहर भारत के स्वतंत्रता संग्राम में कई महत्वपूर्ण घटनाओं का साक्षी रहा है. जैसे, 1885 में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के उभरने, 1920 के दशक में महात्मा गांधी की अहिंसा आंदोलन की शुरुआत. कह सकते हैं कि प्रयागराज का इतिहास ब्रितानी हुकूमत से पहले और बाद में भी देश के इतिहास के साथ-साथ चला है. 1857 की गदर में भी प्रयागराज ने एक अहम भूमिका निभाई थी. यही वजह है कि ब्रितानियों ने उत्तर प्रदेश की वास्तुकला में अपनी शैली वाली कई बेहतरीन इमारतों का निर्माण किया. उस दौर में प्रयागराज औपनिवेशिक वास्तुशिल्प कला के संपर्क में आया और इस तरह इंडो-इस्लामिक शैली में परंपरागत यूरोपियन नियो-क्लासिकल और गॉथिक वास्तुकला का समावेश हुआ. इन इमारतों को आज इंडो-सरकेनिक आर्किटेक्चर का नायाब नमूना करार दिया जाता है. इस दौर की इमारतों में जहां एक तरफ परंपरागत गुंबद और मीनारें अनिवार्य हिस्सा होती थीं, तो आधुनिक ब्रितानी शैली भी उसमें चार चांद लगाने वाली सिद्ध हुई.
भौगोलिक दृष्टि से, प्रयागराज उत्तर प्रदेश के दक्षिणी हिस्से में 25.45 डिग्री उत्तर तथा 81.84 डिग्री पूर्व पर स्थित है. इसके दक्षिणी और दक्षिण पूर्व में बागेलखण्ड क्षेत्र, पूर्व में मध्य गंगा घाटी या पूर्वांचल, दक्षिण-पश्चिम में बुंदेलखंड क्षेत्र, उत्तर और उत्तर-पूर्व में अवध क्षेत्र है. पश्चिम में कौशाम्बी के साथ प्रयागराज दोआब बनाता है जिसे निछला दोआब क्षेत्र कहते हैं. प्रयागराज के उत्तर में प्रतापगढ़, पूर्व में संत रविदासनगर, दक्षिण में रीवा (मध्य प्रदेश) तथा पश्चिम में कौशाम्बी स्थित हैं. जिले का कुल भौगोलिक क्षेत्र 5482 वर्ग मीटर किमी है. जिले को 8 तहसील, 20 विकास खंड में विभाजित किया गया है.
प्रयागराज का शहरी क्षेत्र तीन भागों में वर्गीकृत किया जा सकता है – चैक, कटरा पुराना शहर जो शहर का आर्थिक केंद्र रहा है. यह शहर का सबसे घना क्षेत्र है, जहां भीड़-भाड़ वाली सड़कें यातायात व बाजारों का कां देती हैं. नया शहर जो सिविल लाइंस क्षेत्र के निकट स्थित है, ब्रिटिश काल में स्थापित किया गया था. यह भली-भांति सुनियोजित क्षेत्र ग्रिड-आयरन रोड पैटर्न पर बना है, जिसमें अतिरिक्त कर्णरेखीय सड़कें इसे दक्ष बनाती हैं. यह अपेक्षाकृत कम घनत्व वाला क्षेत्र है, जिसके मार्गों पर वृक्षों की कतारें हैं. यहां प्रधान शैक्षिक संस्थान, उच्च न्यायालय, उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोग कार्यालय, अन्य कार्यालय, उद्यान एवं छावनी क्षेत्र हैं. यहां आधुनिक शॉपिंग मॉल एवं मल्टीप्लेक्स बने हैं, जिनमें निम्नलिखित मुख्य हैं-पीवीआर, बिग बाजार, कोलकाता मॉल, यूनिक बाजार ,जालौन,विशाल मेगामार्ट इत्यादि.
Prayagraj jaha brahma ne kiya tha phela yagay