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पुस्तक जैसा कोई नहीं: विशाल सहाय

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येषां न विद्या न तपो न दानं, ज्ञानं न शीलं न गुणो न धर्मः।
ते मर्त्यलोके भुविभारभूता, मनुष्यरूपेण मृगाश्चरन्ति॥

भावार्थ: जिन लोगों के पास न तो विद्या है, न तप, न दान, न शील, न गुण और न धर्म। वे लोग इस पृथ्वी पर भार हैं और मनुष्य के रूप में मृग/जानवर की तरह से घूमते रहते हैं।

कोरोना के कारण हमारी और आपकी कई क्रियाएं बदल गई। राज काज के तौर-तरीके बदल गए। आॅफिस घर पर आ गया। बच्चों की पढाई आॅनलाइन कराई जाने लगी। समय की मांग को हम सबने स्वीकारा। लेकिन, हाल के लाॅकडाउन अवधि में हम लोग जब घरों में रहे, तो हमने अतीत की ओर झांका। अपनी पुरानी आलमारियों से पुस्तकों को निकाला और पढा। यह समय एक तरह से पुनरावृति की रही। परिवार और मूल्यों की। संस्कारों की। साहित्य की भी।

असल में, आधुनिक युग में संचार माध्यमों का अत्यधिक उपयोग करते हुए हम बच्चों को पुस्तक के बजाय आॅनलाइन की ओर ले जाएं, लेकिन जो बात पुस्तक में है, वह कहीं और नहीं। इन्टरनेट के इस युग में हम पुस्तक को भूल गए हैं। पढ़ने का मतलब इस संचार क्रांति में इन्टरनेट ही रह गया है। युवा चौबीसों घंटे हाथ में मोबाइल लिए इन्टरनेट पर चैट करते मिल गाएंगे। वे पुस्तक से परहेज करने लगे हैं मगर मोबाइल को रिचार्ज करना नहीं भूलते। उन्हें घर या बाहर यह बताने वाला कोई नहीं है कि पुस्तकों का भी अपना एक संसार है।

पुस्तकें दुनिया में सब के मन को प्रभावित करती हैं और उनके मन में प्रेम और एकता की भावना जगाती हैं। लोगों को अपने देश की महिमा बताती हैं और उन्हें अपने देश से प्रेम करना सिखाती हैं। बचपन में माँ और परिवार से सीखने के बाद जब बच्चा स्कूल जाता है तब उसकी मुलाकात किताबों से होती हैं जो उसे जीवन की वास्तविकता से मिलवाती हैं और जीने की कला सिखाती हैं और जब उम्र का सफर पार करते हुए व्यक्ति बुढ़ापे की तरफ बढ़ता है तब भी ये किताबें ही उसके अकेलेपन को साझा करती हैं।किताबे हमें ज्ञान देती हैं और उस ज्ञान को जीवन की परिस्थितियों में सही तरह से लागू करने का गुर भी सिखाती है। किताबें पढ़कर हम प्राचीन संस्कृति से अवगत भी होते हैं और भविष्य की रुपरेखा को भी समझ पाते हैं। इतना ही नहीं, वर्तमान समय में खुद को हर हाल में आगे बढ़ाने का हुनर भी किताबें हमें सिखाती हैं।
दरअसल, पुस्तक या किताब लिखित या मुद्रित पेजों के संग्रह को कहते हैं। पुस्तकें ज्ञान का भण्डार हैं। पुस्तकें हमारी दुष्ट वृत्तियों से सुरक्षा करती हैं। इनमें लेखकों के जीवन भर के अनुभव भरे रहते हैं। यदि कोई परिश्रम करे और अनुभव प्राप्त करने के लिए जीवन लगा दे और फिर उस अनुभव को पुस्तक के थोड़े से पन्नों में दर्ज कर दे तो पाठकों के लिए इससे ज्यादा लाभ की बात क्या हो सकती है। अच्छी पुस्तकें पास होने पर उन्हें मित्रों की कमी नहीं खटकती है वरन वे जितना पुस्तकों का अध्ययन करते हैं पुस्तकें उन्हें उतनी ही उपयोगी मित्र के समान महसूस होती हैं।

आम आदमी के विकास के लिए जरूरी शिक्षा और साक्षरता का एकमात्र साधन किताबें हैं। आज संचार क्रांति ने पुस्तकों से उसके पाठक छीन लिये हैं ऐसे में हमारे कंधों पर बड़ी चुनौती है। आज महात्मा गांधी तथा महात्मा बुद्ध जैसे महान व्यक्तित्वों के सिद्धांतों को पुस्तकों के माध्यम से ही जाना जा रहा है। कहानियों के जरिये बच्चे बहुत सी नई चीजों को सीखते हैं। पुस्तकों का अध्ययन कम हो गया है। पुस्तकें ज्ञान की भूख को मिटाती हैं। पुस्तकों की गहराई में जाने पर आनन्द की प्राप्ति होती है। पुस्तकें ही जिन्दगी हैं और जिन्दगी ही पुस्तकें हैं।

हमारा मानना है कि पुस्तकें एक तरह से जाग्रत देवता हैं उनका अध्ययन मनन और चिंतन कर उनसे तत्काल लाभ प्राप्त किया जा सकता है। मनुष्य को प्रतिदिन सदग्रंथों का अवलोकन करना चाहिए। अच्छी पुस्तकें हमारा सही मार्ग प्रशस्त करती हैं और उत्तम जीवन जीने का सन्देश हमें प्रदान करती हैं। एक तरह से पुस्तकें हमारी सच्ची मित्र और हितैषी होती हैं। वेद, शास्त्र, रामायण, भागवत, गीता आदि ग्रन्ध हमारे जीवन की अमूल्य निधि हैं। पुस्तकें चरित्र निर्माण का सर्वोत्तम साधन हैं। उत्तम विचारों से युक्त पुस्तकों के प्रचार और प्रसार से राष्ट्र के युवा कर्णधारों को नई दिशा दी जा सकती है। देश की एकता और अखंडता का पाठ पढ़ाया जा सकता है और एक सबल राष्ट्र का निर्माण किया जा सकता है। पुस्तकें प्रेरणा की भंडार होती हैं उन्हें पढ़कर जीवन में कुछ महान कर्म करने की भावना जागती है।

 

– विशाल सहाय

Pustak jaisa koi nhi- Vishal Sahay

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