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राजा भागीरथ और गंगा अवतरण की कहानी

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राजा भागीरथ इक्ष्वाकु वंश के एक महान प्रतापी राजा थे ।राजा भगीरथ ने गंगा को स्वर्ग से पृथ्वी पर लाने के लिए बहुत ही कठोर तप किया क्योंकि केवल गंगा ही भागीरथ के पूर्वजों (राजा सागर के 60 हजार पुत्रों) को मोक्ष देने में सक्षम थी। गंगा को मोक्ष दायनी गंगा भी कहते हैं। राजा सागर के साठ हजार पुत्रों को ऋषि कपिल ने श्राप दिया था और वह सब भस्म हो गए थे। पुरातन समय में राजा लोग अपनी प्रभुता को स्थापित करने के लिए अश्वमेध यज्ञ  किया करते थे ।राजा सागर ने भी अश्वमेध यज्ञ का घोड़ा एक वर्ष के लिए छोड़ा था। परंतु इंद्रदेव ने किसी तरह वह घोड़ा चुरा लिया ताकि यह यज्ञ सफल न हो सके। घोड़ा गायब हो गया यह सुनकर राजा सागर ने अपने साठ हजार पुत्रों को घोड़े को ढूंढने के लिए भेजा। राजा सागर के उन पुत्रों ने वह घोड़ा ऋषि कपिल के आश्रम में बंधा हुआ पाया। ऋषि कपिल ज्ञान साधना में रत थे ।सागर के पुत्रों ने उनकी तपस्या में विघ्न डाला, वे घोड़े के बारे में जानना चाहते थे। अपनी तपस्या में विघ्न पड़ने के कारण ऋषि  कपिल  बहुत कुपित हो गए ।अपनी तप के तेज से उन्होंने सागर के साठ हजार पुत्रों को भस्म कर दिया। यह सब जानने के बाद राजा सागर ने अपने प्रपौत्र अमशुमन को ऋषि कपिल के आश्रम में भेजा और उनसे अपने साठ हजार पुत्रों की आत्मा की मुक्ति का उपाय पूछा। ऋषि ने कहा कि केवल गंगा का जल जो स्वर्ग में बहता है, उनकी मुक्ति प्रदान कर सकता है ।अमशुमन के पौत्र भागीरथ जो कि राजा दिलीप के बेटे थे उन्होंने ब्रह्मा जी को प्रसन्न करने के लिए कई वर्षों तक  हिमालय में बहुत कठिन तपस्या की ।उन्होंने ब्रह्मा जी से प्रार्थना की गंगा को पृथ्वी पर लाने की उपाय बताया जाए जिससे गंगा के पवित्र प्रवाह से उनके पूर्वजों की आत्मा को मुक्ति मिल सके।  ब्रह्मा जी ने उनकी प्रार्थना को स्वीकार की और गंगा को धरती पर आने की स्वीकृति दी ।परंतु गंगा का वेग इतना प्रबल था कि वह पूरी धरा को बहा सकता था। भागीरथ असमंजस में आ गए। उन्होंने गंगा से इसका समाधान पूछा तो गंगा ने कहा कि केवल भगवान शिव के पास ही वह शक्ति और सामर्थ्य है कि जो मेरे वेग को नियंत्रित कर सके। यदि वो मुझे  अपने शीश पर धारण करें  तभी वह धरती पर आएगी। यह सुनने के बाद भागीरथ ने भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए तप किया। भगवान शिव  उसकी तपस्या से प्रसन्न हो गए और उन्होंने गंगा को अपनी जटा से बहने की अनुमति दे दी। गंगा दशहरे के दिन भगवान शिव ने अपनी प्रतिज्ञा पूरी की और बिना पलक झपके आकाश की ओर देखा। गंगा स्वर्ग से बहने लगी और शिव की जटाओं में समा गई। भगवान शिव ने उसकी एक धारा को धरती पर बहने के लिए छोड़ा। वहां से गंग का धरती पर अवतरण हुआ। यह स्थान अब गंगोत्री कहलाता है और क्योंकि गंगा शिव के जटाओं से धरती पर आई तो  वह जटाशंकरी भी कहलाई। बहते समय गंगा ने अपने प्रभाव से ऋषि जाहना का आश्रम तहस-नहस कर दिया तो उन्होंने क्रोधित होकर उसके प्रवाह को वहीं रोक दिया, पर राजा भगीरथ की प्रार्थना पर उसे मुक्त कर दिया। इससे गंगा का एक नाम जाह्नवी भी पड़ा। गंगा ने ऋषि कपिल के आश्रम में पहुंचकर राजा भगीरथ के पूर्वजों को मुक्त किया ताकि उनकी आत्मा मोक्ष प्राप्त कर सके और फिर बंगाल की खाड़ी में लुप्त हो गई। इस स्थान को गंगासागर कहते हैं। भागीरथ की अथक प्रयास से गंगा का अवतरण धरती पर हुआ था इसलिए इसको भागीरथी भी कहते हैं।
राजा भगीरथ ने गंगा को पृथ्वी पर लाने के लिए हर संभव प्रयास किया, कहीं भी हार नहीं मानी और अपना उद्देश्य पूर्ण करने में सफल रहे ।इसके बाद से यह कहावत प्रसिद्ध हो गई कि किसी भी  उद्देश्य की प्राप्ति के लिए भगीरथ प्रयास से व्यक्ति का सफलता मिलती है।

लेखिका- रजनी गुप्ता

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