Home Home-Banner एमपी के सिलेबस में शामिल, रानी दुर्गावती और अवंती बाई के शौर्य...

एमपी के सिलेबस में शामिल, रानी दुर्गावती और अवंती बाई के शौर्य की कहानी

4428

durga wati

Rani Durgavati and Rani Avanti bai: मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने गैरिसन ग्राउंड में आयोजित कार्यक्रम में कहा कि यह धरती जाबालि ऋषि की धरती है। यहाँ पर झांसी की रानी ने अंग्रेजों से लोहा लिया है। यह धरती भारत की वीरांगनाओं की धरती है। अब यहां के पाठ्यक्रमों में रानी दुर्गावती और अवंती बाई की शौर्य की कहानियों को पढ़ाया जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि इन वीरांगनाओं के अदम्य साहस और पराक्रम ने भारत के इतिहास को गौरवान्वित किया है।

मुख्यमंत्री ने इस बात पर जोर दिया कि भारत को अपने इन वीरांगनाओं के इतिहास को पढ़ने की जरूरत है। उन्होंने यह भी कहा कि रानी दुर्गावती और रानी अवंती बाई के शौर्य को नई शिक्षा नीति के अंतर्गत पढ़ाया जाएगा, ताकि आज की पीढ़ी उनके योगदान से परिचित हो सके। आपको बता दें कि बीते दिनों प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 100 करोड़ की राशि से बनने वाले रानी दुर्गावती के स्मारक का भी लोकार्पण किया।

durga wati

कौन थी वीरांगना रानी दुर्गावती

मध्य प्रदेश के बांदा जिले में कालिंजर किले में 1524 ई को दुर्गाष्टमी तिथि के शुभ अवसर पर कालिंजर के राजा कीर्तिसिंह चंदेल के घर, एक साहसी और संदर कन्या का जन्म हुआ। यह थी दुर्गावती। जिनका नामकरण उनकी जन्म तिथि के आधार पर ही हुआ था।

रानी दुर्गावती का विवाह दलपत शाह के साथ हुआ। लेकिन दुर्भाग्यवश विवाह के 4 वर्ष बाद ही इनके पति का निधन हो गया। उस समय दर्गावती का पुत्र नारायण मात्र 3 वर्ष का था। इसिलए रानी दुर्गावती ने सत्ता की बागडोर अपने हाथों में ली और एक बेहतर योद्धा और शासक बन कर दिखाया।

इतिहास के पन्ने बताते हैं कि इस वीरांगना और इसकी सेना ने अकबर की विशाल सेना तक से लोहा ले लिया था।इनके राज्य में जब कभी शेर का हमला होता यह अकेले ही शिकार पर चल देती थी। रानी दुर्गावती के अंत की कहानी भी इनकी वीरता का प्रमाण देती है। जब युद्ध क्षेत्र में इस वीरांगना ने स्वयं के कटार को अपने सीने में उतार दिया, लेकिन जीते जी खुद पर विरोधियों को जीतते नहीं दिया। 16 वर्षों के अपने शासन में इन्होंने अनेक मंदिर, मठ, सामाजिक कुएं, बाबड़ी और धर्मशालाएं बनवाईं।

awanti bai

अवंति बाई की कहानी

वीरांगना महारानी अवंतीबाई का जन्म लोधी राजपूत के घर 16 अगस्त 1831 को हुआ था। बचपन से ही घुड़सवारी और तलवारबाजी में पारंगत थी। इनका विवाह रामगढ़ रियासत के मंडला जिला के राजकुमार से हुआ। इनके पति विक्रमादित्य सिंह अपने राजतिलक के कुछ ही दिन बाद अस्वस्थ रहने लगे। जिस कारण रानी को सत्ता संभालनी पड़ी।

लेकिन रानी का साम्राज्य भी डलहौजी की हड़पनीति का शिकार हो गया। और मजबूरन पेँशनभोगी हो कर रह गया। लेकिन जब भारतवर्ष में 1857 के विद्रोह की मशाल जल रही थी तब रानी ने आसपास के राजाओं को इसमें अपनी भागीदारी सुनिश्चित करने के लिए एक पत्र और चूड़ियां भेजी। उस पत्र में लिखा था या तो विद्रोह में साथ दो नहीं तो चूड़ी पहन कर बैठ जाओ। हुआ भी यही आसपास के राजाओं ने रानी के नेतृत्व अपना योगदान दिया।

रानी ने मंडला पर आक्रमण कर अंग्रेजी सेना और उसके कमांडर वाडिंगटन को धूल चटा दी। वाडिंगटन को मजबूरन मैदान छोड़ कर भागना पड़ा। अपनी इस हार का बदला लेने के लिए वांडिगटन ने रीवा नरेश के साथ षडयंत्र रचा। और रामगढ़ पर धोखे से हमला कर दिया। ब्रिटिश सेना के संख्या बल में ज्यादा होने के बाद भी रानी की सेना ने उनसे जी तोड़ मुकाबला किया। रानी की सेना इस षडयंत्र के कारण चारों ओर से घिर गई। जब रानी को लग गया कि अंग्रेज अब उस तक पहुंच बना सकते हैं तो एक वीर योद्धा की तरह वह युद्ध में अपने अंगरक्षक के तलवार को लेकर खुद का बलिदान कर दिया। लेकिन जीते जी हार नहीं मानी।

और पढ़ें-

गुलाब-प्रेम, स्वाद और सुंदरता का प्रतीक

आइए जानें जीवन के 16 संस्कारों के बारे में, क्या है इनकी महत्ता

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here