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क्षितिज के पार मुकाम गढ़ता इसरो

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टीम हिन्दी

भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान परिषद यानी इसरो अंतरिक्ष की दुनिया में एक के बाद एक मुकाम हासिल करता जा रहा है. हाल ही में चंद्रयान 2 की सफलता ने इसके रिकॉर्ड को और अधिक बेहतर बनाया है. भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) आज दुनिया की सबसे भरोसेमंद स्पेस एजेंसी है. दुनियाभर के करीब 32 देश इसरो के रॉकेट से अपने उपग्रहों को लॉन्च कराते हैं. 16 फरवरी 1962 को डॉ. विक्रम साराभाई और डॉ. रामानाथन ने इंडियन नेशनल कमेटी फॉर स्पेस रिसर्च (INCOSPAR) का गठन किया. तिरुवंनतपुरम के थुंबा में मौजूद सेंट मैरी मैगडेलेन चर्च में थुंबा इक्वेटोरियल रॉकेट लॉन्चिंग स्टेशन बनाया गया. 1963 में पहला साउंडिंग रॉकेट छोड़ा गया.

चंद्रयान-2 (Chandrayaan-2) के लॉन्च के बाद इसरो (ISRO) ने अपने नए मिशन की जानकारी दी है. इसरो साल 2020 में अपना मिशन सूर्य पूरा करेगी. इसका नाम आदित्य-एल1 होगा. न्यूज एजेंसी ने इसरो के हवाले से बताया कि इसे 2020 के मध्य तक लॉन्च करने की योजना है. इसका मकसद यह पता लगाना है कि सूर्य के सतह के तापमान 6000 कैलविन से कोरोना का तापमान 300 गुना ज्यादा क्यों है ? जबकि कोरोना इससे काफी ऊपर है. इसरो ने अपनी वेबसाइट पर इस मिशन से संबंधित जानकारी साझा की है. सूर्य की इस बाहरी परत को तेजोमंडल कहते हैं, जो हजारों किमी तक फैली है.

जानकारी के मुताबिक, आदित्य-एल1 पृथ्वी से 1.5 मिलियन किमी की दूरी पर स्थित होगा. वहां से यह हमेशा सूर्य की ओर देखेगा. सूर्य की इस बाहरी परत ‘तेजोमंडल’ का विश्लेषण देगा. इसका क्लाइमेट चेंज पर इसका खासा प्रभाव है. आदित्य-एल1, सूर्य के फोटोस्फेयर, क्रोमोस्फेयर और तेजोमंडल का अध्ययन कर सकता है. यह सूर्य से निकलने वाले विस्फोटक कणों का अध्ययन भी किया जाएगा. इसरो के अनुसार यह कण पृथ्वी के नीचे वाले ऑरबिट में किसी काम के नहीं होते. इन्हें पृथ्वी के चुंबकीय क्षेत्र से बाहर रखने की जरूरत है.

हमारे देश में अंतरिक्ष अनुसंधान गतिविधियों की शुरूआत 1960 के दौरान हुई, जिस समय संयुक्‍त राष्‍ट्र  अमरीका में भी उपग्रहों का प्रयोग करने वाले अनुप्रयोग परीक्षणात्‍मक चरणों पर थे. अमरीकी उपग्रह ‘सिनकाम-3’ द्वारा प्रशांत महासागरीय क्षेत्र में टोकियो ओलंपिक खेलों के सीधे प्रसारण ने संचार उपग्रहों की सक्षमता को प्रदर्शित किया, जिससे डॉ. विक्रम साराभाई, भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम के जनक ने तत्‍काल भारत के लिए अंतरिक्ष प्रौद्योगिकियों के लाभों को पहचाना.

डॉ. साराभाई यह मानते थे तथा उनकी यह दूर‍दर्शिता थी कि अंतरिक्ष के संसाधनों में इतना सामर्थ्‍य है कि वह मानव तथा समाज की वास्‍तविक समस्‍याओं को दूर कर सकते हैं. अहमदाबाद स्थित भौतिक अनुसंधान प्रयोगशाला (पी.आर.एल.) के निदेशक के रूप में डॉ. साराभाई ने देश के सभी ओर से सक्षम तथा उत्‍कृष्‍ट वैज्ञानिकों, मानवविज्ञानियों, विचारकों तथा समाजविज्ञानियों को मिलाकर भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम का नेतृत्‍व करने के लिए एक दल गठित किया.

अपनी शुरूआती दिनों से ही भारतीय अंतरिक्ष कार्यक्रम की सुदृढ़ योजना रही तथा तीन विशिष्‍ट खंड जैसे संचार तथा सुदूर संवेदन के लिए उपग्रह, अंतरिक्ष परिवहन प्रणाली तथा अनुप्रयोग कार्यक्रम को, इसमें शामिल किया गया. डॉ. साराभाई तथा डॉ. रामनाथन के नेतृत्‍व में इन्कोस्‍पार (भारतीय राष्‍ट्रीय अंतरिक्ष अनुसंधान समिति) की शुरूआत हुई. 1967 में, अहमदाबाद स्थित पहले परीक्षणात्‍मक उपग्रह संचार भू-स्‍टेशन (ई.एस.ई.एस.) का प्रचालन किया गया, जिसने भारतीय तथा अंतर्राष्‍ट्रीय वैज्ञानिकों और अभियंताओं के लिए प्रशिक्षण केन्‍द्र के रूप में भी कार्य किया.

80 के दशक के परीक्षणात्‍मक चरण में, प्रयोक्‍ताओं के लिए, सहयोगी भू प्रणालियों के साथ अंतरिक्ष प्रणालियों के डिजाइन, विकास तथा कक्षीय प्रबंधन में शुरू से अंत तक क्षमता प्रदर्शन किया गया. सुदूर संवेदन के क्षेत्र में भास्‍कर-। एवं ।। ठोस कदम थे जबकि भावी संचार उपग्रह प्रणाली के लिए ‘ऐरियन यात्री नीतभार परीक्षण (ऐप्‍पल) अग्रदूत बना. जटिल सं‍वर्धित उपग्रह प्रमोचक राकेट (ए.एस.एल.वी.) के विकास ने नई प्रौद्योगिकियों जैसे स्‍ट्रैप-ऑन, बलबस ताप कवच, बंद पाश मार्गदर्शिका तथा अंकीय स्‍वपायलट के प्रयोग को भी प्रदर्शित किया. इससे, जटिल मिशनों हेतु प्रमोचक राकेट डिजाइन की कई बारीकियों को जानने का मौका मिला, जिससे पी.एस.एल.वी. तथा जी.एस.एल.वी. जैसे प्रचालनात्‍मक प्रमोचक राकेटों का निर्माण किया जा सका.

90 के दशक के प्रचालनात्‍मक दौर के दौरान, दो व्‍यापक श्रेणियों के अंतर्गत प्रमुख अंतरिक्ष अवसंरचना का निर्माण किया गया: एक का प्रयोग बहु-उद्देश्‍यीय भारतीय राष्‍ट्रीय उपग्रह प्रणाली (इन्‍सैट) के माध्‍यम से संचार, प्रसारण तथा मौसमविज्ञान के लिए किया गया, तथा दूसरे का भारतीय सुदूर संवेदन उपग्रह (आई.आर.एस.) प्रणाली के लिए. ध्रुवीय उपग्रह प्रमोचक राकेट (पी.एस.एल.वी.) तथा भूतुल्‍यकाली उपग्रह प्रमोचक राकेट (जी.एस.एल.वी.) का विकास तथा प्रचालन इस चरण की विशिष्‍ट उपलब्धियाँ थीं.

भारतीय अन्तरिक्ष अनुसन्धान संगठन की स्थापना 15 अगस्त 1969 में की गयी थी. तब इसका नाम ‘अंतरिक्ष अनुसंधान के लिए भारतीय राष्ट्रीय समिति’ (INCOSPAR) था. भारत का पहला उपग्रह, आर्यभट्ट,19 अप्रैल 1975 को सोवियत संघ द्वारा छोड़ा गया था. इसका नाम गणितज्ञ आर्यभट्ट के नाम पर रखा गया था. इसने 5 दिन बाद काम करना बन्द कर दिया था. लेकिन यह अपने आप में भारत के लिए एक बड़ी उपलब्धि थी. 7 जून 1979 को भारत का दूसरा उपग्रह भास्कर जो 445 किलो का था, पृथ्वी की कक्षा में स्थापित किया गया.

इसरो के वर्तमान निदेशक डॉ कैलासवटिवु शिवन् हैं. आज भारत न सिर्फ अपने अंतरिक्ष संबंधी आवश्यकताओं की पूर्ति करने में सक्षम है बल्कि दुनिया के बहुत से देशों को अपनी अंतरिक्ष क्षमता से व्यापारिक और अन्य स्तरों पर सहयोग कर रहा है. दुनिया के साथ ही एशिया में पहली बार अंतरिक्ष एजेंसी में एजेंसी को सफलतापूर्वक मंगल ग्रह की कक्षा तक पहुंचने के लिए इसरो चौथे स्थान पर रहा. भविष्य की योजनाओं मे शामिल जीएसएलवी एमके III के विकास (भारी उपग्रहों के प्रक्षेपण के लिए) ULV, एक पुन: प्रयोज्य प्रक्षेपण यान, मानव अंतरिक्ष, आगे चंद्र अन्वेषण, ग्रहों के बीच जांच, एक सौर मिशन अंतरिक्ष यान के विकास आदि. इसरो को शांति, निरस्त्रीकरण और विकास के लिए साल 2014 के इंदिरा गांधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. मंगलयान के सफल प्रक्षेपण के लगभग एक वर्ष बाद इसने 29 सितंबर 2015 को एस्ट्रोसैट के रूप में भारत की पहली अंतरिक्ष वेधशाला स्थापित किया. जून 2016 तक इसरो लगभग 20 अलग-अलग देशों के 57 उपग्रहों को लॉन्च कर चुका है, और इसके द्वारा उसने अब तक 10 करोड़ अमेरिकी डॉलर कमाए हैं.

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