हिन्दी बोलने मात्र से भारत का बोध होता है। विश्व के किसी भी कोने में कोई हिन्दी बोलते और सुनते नजर आएंगे, तो उनका सरोकार भारत से ही होगा। आज हिन्दी वैश्विक पटल पर स्थान बना रही है। हिन्दी भाषियों की बढ़ती संख्या के कारण बाजार ने इसे हाथों-हाथ लिया। बाजार के साथ-साथ सर्च इंजन गूगल ने भी इसे मान दिया है। इससे यह सिद्ध होता है कि हमारी हिन्दी किसी से कम नहीं है। विश्व की तमाम भाषाओं के बीच हमारी हिन्दी समृद्ध है।
आज हम और आप डिजिटल युग में हैं। घर की आपसी बात भी व्हाट्सएप के जरिए कर रहे हैं। फेसबुक और इंस्टाग्राम पर खुशियों को साझा कर रहे हैं। तकनीक के विशेषज्ञों का मानना है कि आने वाले डिजिटल युग में तीन भाषाओं का वर्चस्व रहेगा – इंग्लिश, चाईनीज और हिन्दी। इसलिए हमारी जिम्मेदारी अधिक है। अपनी जिम्मेदारी को समझते हुए हमने ‘द हिन्दी’ की शुरुआत की है। बाजार के युग में कुछ लोगों में अपनी भाषाओं के प्रति दरिद्रता का बोध है। जिस दिन हम अपनी भाषायी दरिद्रता के बोध से बाहर आ जाएंगे, हमारी और आपकी हिन्दी पहले से भी अधिक समृद्ध हो जाएगी। इसे समृद्ध करने और हिन्दी के नए बेटे-बेटियों के लिए नया ठिकाना है – ‘द हिन्दी’।
जो पीढ़ी इंग्लिश, हिंग्लिश को ही आम बोलचाल की भाषा समझ बैठी है, उसके बीच ‘द हिन्दी’ अपनी उपस्थिति बनाएं। हमारी भाषा को ताकत मिले और भाषा के साथ ज्ञान का और अनुभव का भंडार भी होता है। हर पीढ़ी का दायित्व रहता है, भाषा को समृद्धि देना। अपने इसी दायित्व के निर्वहन की कोशिश है – ‘द हिन्दी’। जब भी कोई अंधकार से लड़ने का संकल्प कर लेता है, तो एक अकेला जुगनू भी अंधकार को हर लेता है। युद्ध में इतिहास आपका आकलन इस बात से नहीं करता कि आप जीते या हारे। इस बात से आकलन करता है कि आपने गोली पीठ पर खायी या छाती पर खायी। जो भी काम करें, पूरी दृढ़ता के साथ
करें।
‘द हिन्दी’ के माध्यम से हम हर मोबाइल तक पहुंचने के लिए प्रतिबद्ध हैं। चूंकि हम एक ऐसे समय में ‘द हिन्दी’ की बात कर रहे हैं जब अंग्रेजी विश्वभाषा के रूप में स्थापित हो चुकी है। हालांकि, सत्य यह भी है कि इसी समय में निज भाषा आंदोलनों ने भी सिर उठाया और तकनीक ने उस स्वर को और मुखर किया। दुनियाभर में लोगों का अपनी भाषा के प्रति रुझान बढ़ा। कोई भाषा जब अपनी यात्रा शुरू करती है, तब वह अपने साथ उस भाषा के समस्त भूगोल और संस्कृति को समेटे हुए होती है। इसलिए ‘द हिन्दी’ केवल भाषा की बात नहीं करती है। ‘द हिन्दी’ ने भारतीय सभ्यता और संस्कृति के साथ यात्रा करने का निर्णय लिया है। साहित्य समाज का दर्पण है। इसलिए हम जब भारतीय समाज की बात करेंगे, तो साहित्य हमारे साथ है।
Bhartiye ka nya thikana hai the hindi