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लग्जीरियस ब्रांड का बढ़ता दबाव

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टीम हिन्दी

पहनने का कोई आइटम हो या रोजाना यूज किए जाने वाले प्रोडक्ट। यूथ को तो बस ब्रांडेड ही चाहिए। और ब्रांडेड न सही तो उसके नाम वाला डुप्लीकेट मॉल भी चल जाएगा, बस दिखना ओरिजनल चाहिए। ब्रांडेड आइटम का इतना ज्यादा क्रेज क्यों है? आज हर लड़का या लड़की ब्रांडेड आइटम पहनना चाहते हैं इसके पीछे की वजह आज के मध्यम वर्ग के युवाओं की सोच में पिछले कुछ सालों में आया बदलाव है। जो यह सोचता है कि उसकी पहचान और समाज में रुतबा ब्रांड की वजह से भी मिलता है। और ये बात काफी हद तक सही भी है। ‘फर्स्ट इंप्रेशन इज लास्ट इंप्रेशन’ वाली बात कहीं न कहीं इसी बात को सही ठहराती है।

लोकल मार्केट के महारथियों ने यूथ में ब्रांडेड आइटम के क्रेज को देखते हुए फेमस ब्रांड से मिलते-जुलते नामों वाले अनेक ब्रांड मार्केट में ला दिए हैं। ये ओरिजनल ब्रांडों के नामों से इतने ज्यादा मिलते-जुलते हैं कि आसानी से इसमें फर्क नहीं किया जा सकता। बाजार में ऐसे भी अनगिनत लोग हैं जो कि ओरिजनल नाम से ही डुप्लीकेट माल बेच रहे हैं। और इनके खरीदारों की भी कोई कमी नहीं है। क्योंकि ये दिखने में बिल्कुल ओरिजनल जैसे ही लगते हैं। और सस्ते होते हैं। ऐसे सामानों के लिए दिल्ली में खास मार्केट भी हैं। इनमें मोनेस्ट्री, लाजपत नगर, सरोजनी नगर, टैंक रोड और गांधी नगर सबसे ज्यादा भरोसेमंद माने जाते हैं।

बाजार में ब्रांडेड आइटम की धूम है, लेकिन इनके लिए मोटा पैसा भी देना पड़ता है। साउथ एक्स में रहने वाली रजनी ने बताया कि अगर किसी खास मौके के लिए आपने ऊपर से नीचे तक ब्रांडेड सामानों से लैस होने का मन बना लिया तो कम से कम आपको अपनी जेब से 15 हजार से 20 हजार रुपए खर्च करने पड़ेंगे। वहीं जब मैं इसके लिए लाजपत या सरोजनी नगर जैसी मार्केट में जाती हूं तो सबकुछ महज 2 हजार से 3 हजार रुपए में मिल जाता है। इससे बजट भी ठीक रहता है और टशन मारने में कोई कमी भी नहीं रहती।

मेट्रो सिटीज में छोटे शहरों की तुलना में ब्रांड कांशेसनेस ज्यादा है। इसकी वजह स्टाइल के साथ ही साथ लोगों के बीच अपनी दमदार छवि बनाने की चाहत भी है। गुड़गांव के एक मैनेजमेंट कॉलेज में बतौर असिस्टेंट प्रोफेसर काम कर रहे मनोज वर्मा ने कहा कि हर स्टूडेंट में एक दूसरे ये बढ़कर ब्रांडेड आइटम को यूज करने की जैसे होड़ लगी हुई है। लड़कियां जहां अपने पर्स, सैंडिल, परफ्यूम, नेल पेंट के ब्रांड को लेकर बातचीत में खासी दिलचस्पी रखती हैं तो वहीं लड़कों में अपने जूतों से लेकर जींस, शर्ट, बेल्ट, टी-शर्ट यहां तक की हेयर जेल के ब्रांड तक का बहुत ज्यादा क्रेज है। अगर कभी ग्रुप डिस्कशन के दौरान ‘ब्रांड’ टॉपिक हो तो इन सबकी जानकारी हैरान कर देने वाली होती है। इन लोगों को ब्रांड की क्वालिटी के साथ ही उसकी पूरी हिस्ट्री भी पता होती है।

असल में, युवा पीढ़ी के लिए मॉल में आना, घूमना, समय गुजारना एक नशा है। वे नहीं आते हैं तो उन्हें लगता है कि कुछ बहुत जरूरी छूट गया है। यह मॉल-संस्कृति है। पांच सितारा साज-सज्जा में बड़ी-बड़ी ब्रांडेड दुकानें हैं, अंतररष्ट्रीय शृंखला के कॉफी हाऊस हैं, रेस्तरां और सुपर स्टोर। गृहिणियां यहां सुपर स्टोर से घर की खरीददारी करती हैं। घूमती हैं, कॉफी पीती हैं और खुश होकर लौट आती हैं। सबके लिए कुछ न कुछ तो है ही। मॉल के बाहर भी कुछ रेस्तरां हैं जहां आसानी से बैठ कर सामान्य दाम पर चाय-नाश्ता किया जा सकता है। वहां भी भीड़ थी। उस भीड़ में मुझे छात्र-छात्राएं अधिक दीख रहे थे। वहां से थोड़ी दूर पर एक खुले बाजार में कपड़े, जूते-चप्पलें, घरेलू वस्तुएं और साज-सज्जा के लिए कॉस्मेटिक्स भी। वहां भी भीड़ थी।

किसी विशेष यानी कुछ मशहूर त्योहारों के दिन भी ऐसी भीड़ मौजूद होती है। आज के जीवन की यह नई शैली है। यहां अच्छे-बुरे का प्रश्न नहीं है। बदले समय में जीवन जीने का एक अपना तरीका है।

Luxurious brand ka badhta davab

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