खैरियत, मंगल और प्रसन्नता के अर्थ में भी कुशल शब्द का प्रयोग होता है। कुशल-क्षेम, कुशल-मंगल से यह साफ जाहिर है। यह बना है संस्कृत के कुशः से। हिन्दी में यह भी काफी आम है और इससे बने शब्द खूब प्रचलित हैं। संस्कृत के कुशः का मतलब होता है एक प्रकार की वनस्पति, तृण, पत्ती, घास जो पवित्र-मांगलिक कर्मों की आवश्यक सामग्री मानी जाती है। प्रायः सभी हिन्दू मांगलिक संस्कारों में इस दूब या कुशा का प्रयोग पुरोहितों द्वारा किया ही जाता है।
प्राचीनकाल में गुरुकुलवासी बटुकों से मुनिजन कुश घास को एकत्र कराते थे जो विभिन्न कार्यों में प्रयोग की जाती थी। छप्पर यज्ञ कर्म में इसका विशेष महत्व था। जो शिष्य सही तरीके से कुश को बीनता, था वह कुशल कहलाता था।
कालान्तर में किसी कार्य को दक्षतार्वक करने वाले के लिए यही कुशल शब्द रूढ हो गया। इसी क्रम में आता है कुशाग्र। हिन्दी के इस शब्द का मतलब होता है अत्यधिक बुद्धिमान, अक्लमंद। चतुर आदि। गौर करें कुशः के घास या दूब वाले अर्थ पर। यह घास अत्यंत पतली होती है जो अपने किनारों पर बेहद पैनी हो जाती है। चूंकि इसका आगे का हिस्सा नोकीला होता है इसलिए इस हिस्से को कुशाग्र कहा गया अर्थात कुश का अगला हिस्सा (जो नोकीला है)। जाहिर सी बात है कि कालांतर में बुद्धिमान व्यक्ति की तीक्ष्णता आंकने के लिए कुशाग्र बुद्धि शब्द चल पड़ा।
तुलसीदास जी ने रामचरित मानस में जो लिखा वो एक प्रसिद्ध उक्ति बन गई-
पर उपदेश कुशल बहुतेरे। जे अचरहिं ते नर न घनेरे।
Kaha sei aya kushal shabd