आज जब हम अपने खान पान और स्वास्थ्य को लेकर ज्यादा चिंतित हो रहे हैं। व्यस्त दिनचर्या और बाजारू उत्पाद के प्रति निर्भरता ने हमें प्राकृतिक उत्पादों से काफी दूर कर दिया है। आज लगभग हर तीन में से एक आदमी जहां एक ओर किसी ना किसी स्वास्थ्य समस्या से जूझ रहा है तो वहीं उसे अपने शरीर में बढ़ रहे शुगर लेवल की चिंता है। जिस वजह से वह मिठास की हर चीजों से दूरी बना रहा है। डर के इस माहौल में वह भूलता जा रहा है कि हमने कभी प्राकृतिक मिठास के लिए एक चीज बनाई थी जो कि हमारे स्वास्थ्य को भी उन्नत करता है और नुकसान तो ना के बराबर ।
जी हां हम बात कर रहे हैं भारतीय उपमहाद्वीप और दक्षिण एशिया में सदियों से सेवन किए जाने वाले एक पारंपरिक मिठास के स्त्रोत गुड़ की। वैसे तो आपको पता ही होगा कि गुड़ गन्ना के केन्द्रपसारन के द्वारा बनाया जाता है। लेकिन क्या आपको पता है हमारे देश में गन्ने की रस के अलावा एक और साधन है जिससे गड़ बनाया जाता है। जी हैं भारतीय उप-महाद्वीप में गन्ने के रस के साथ साथ ताड़ी के रस से भी गुड़ बनाने की परंपरा रही है। आपको जानकर शायद यह आश्चर्य लगे लेकिन यह सच्चाई है कि ताड़ी का गुड़,गन्ने के गुड़ से ज्यादा शुद्ध और स्वास्थ्यवर्द्धक होता है। इसे मीठी ताड़ी के रस से बनाया जाता है। ग्रीष्म ऋतु में अक्सर इस तरह के मीठी ताड़ी के रस को एकत्र कर बनाये जाने वाले इस गुड़ में गन्ने से बने गुड़ से ज्यादा ग्लूकोज़ होता है। जाता है। तभी तो भारतीय समाज में ताड़ी के पेड़ों का भी अपना एक अलग महत्व है।
गुड़ अपने में काफी औषिधीय गुणों को समाए है। गुड़ का समय के साथ भी एक अलग ही नाता है। गुड़ की ताजा प्रकृति तो उपयोग की वस्तु है ही उसके साथ साथ पुराने समय तक बना कर रखें गुड़ के भी अपने फायदे हैं। स्वाद में मीठा गुड़ में गुणों की खान भरी हुई है ये सेहत,शरीर और त्वचा के साथ साथ कई चीजों के लिए फायदेमंद है। सर्दियों के समय गुड़ सरलता से उपलब्ध होती है और मौसमी मिठाई तो है ही। चाहे पेट की समस्या हो या जोड़ो में दर्द ,त्वचा हो या सर्दी-जुकाम। शरीर के तापमान को नियंत्रित करने से लेकर शरीर में आयरन की कमी की स्थिति में गुड़ काफी फायदे की चीज है। क्या आपको पता है अस्थमा जैसी वंशागत बिमारी में भी गुड़ बहुत ज्यादा फायदेमंद है। पीलिय,महिलाओं के मासिक धर्म,स्मरण शक्ति तेज करने में,कम भूख की स्थिति में,गला बैठ जाने पर,सांस संबंधी रोगों में और ना जाने क्या-क्या, पर गुड़ सब में काम आता है।
क्या आपको पता है कि गुड़ के गुण पर मिट्टी का प्रभाव काफी मायने रखता है। जिस मिट्टी में लवण की मात्रा ज्यादा होती है वहां पैदा होने वाले गन्ने से बना गुड़ प्राय अच्छा नहीं होता। इसके मिठास में भी एक अलग ही खारापन होता है।गड़ का उपयोग भारत में प्राचीन समय से होता रहा है। यह भोजन के साथ और भोजन के बाद दोनों स्थिति में ही उपयोग में आता रहा है। भारत के पश्चिमी प्रांत पंजाब,हरियाणा,दिल्ली,पश्चिम उत्तरप्रदेश में इसे चूरा बनाकर लगभग हर घर में खाया जाता है। वहां इसे चूरा-शक्कर कहा जाता है। गुड़ के बनाते समय ही इसमें अनेक मसालों को मिलाया जाता है जिसमें इलायची,सौंफ,काली मिर्च है,जिसे प्राय हाजमा को ठीक करने के लिए उपयोग में लाया जाता रहा है। श्रीलंका में तो किथुल(कैरियटा यूरेन्स) के पेड़ो से सिरप के अर्क का व्यापक रूप से गुड़ उत्पादन के लिए उपयोग किया जाता है। क्या आपको पता है जब गन्ने को क्रश कर के एक निश्चित ताप पर पकाया जाता है तो इसमें मौजूद गन्ने के छिलकों को अलग करने के लिए चूने को मिलाया जाता है ताकि रस में मौजूद गंदगी झाग बनकर ऊपर आ जाए जिसे करछी की मदद से बाहर निकाल लिया जाता है।
भारत में महाराष्ट्र गुड़ का सबसे बड़ा उत्पादक और उपभोक्ता राज्य है। गुड़ को मराठी में गुल और उर्दू में गुर, तेलगु में बेला,कन्नड़ में वेलम कहा जाता है।बंगाल में तो गुड़ को गुआ कह कर बुलाते हैं ।क्या आप जानते हैं संस्कृत में इसे मीता कहा जाता है। कोल्हापुर के गुड़ को तो जीआई टैग भी मिला है। मतबल गुड़ बनाने की स्थानीय पाक कला को वैश्विक मान्यता। तो अपने जीवन में मिठास की इस प्रकृति को अपनाएं और उत्तम स्वास्थ्य को प्राप्त करें।