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क्यों रखा जाता है नवरात्रों के दौरान ‘व्रत’

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सर्वमंगलमांगल्ये शिवे सर्वार्थसाधिके ।
शरण्ये त्र्यंबके गौरि नारायणि नमोऽस्तु ते ।।

अर्थात्- हे नारायणी! तुम सब प्रकार का मंगल प्रदान करने वाली मंगल मयी हो, कल्याण दायिनी शिवा हो, सब पुरुषार्थो को सिद्ध करने वाली, शरणागत वत्सला, तीन नेत्रों वाली एवं गौरी हो। सर्वप्रथम, तुम्हें नमस्कार है।

ऐसी ही माँ गौरी, माँ शारदा की आराधना का पर्व यानी ‘नवरात्र’। अमावस्या की रात से अष्टमी तक या पड़वा से नवमी की दोपहर तक व्रत नियम के अनुसार चलने से जो नौ रात आती है वो है ‘नवरात्र’।

और जैसा कि हम सब जानते हैं नवरात्रों में देवी पूजन के साथ ही नौ दिनों तक श्रद्धा से माँ का व्रत भी किया जाता है। इस दिन से कई लोग नौ दिनों का या दो दिन का उपवास रखते हैं।

 

नवरात्रों में व्रत रखने की परंपरा आदिकाल से चली आ रही है और इस दौरान किए जाने वाले ये व्रत अपना एक विशेष महत्व भी रखते हैं, ये हमारे अंदर एक नव शक्ति और नव ऊर्जा का संचार करते हैं।

धार्मिक दृष्टि से देखें तो, नवरात्रों के दौरान रखे जाने वाले व्रत से माँ दुर्गा की कृपा होती है। हमारी सारी मनोकामनाएं पूर्ण होती है तथा मनोवांछित फल की प्राप्ति भी होती है।

मान्यता है कि, नवरात्र में रखे जाने वाले व्रत हमारी आत्मा की शुद्धता के लिए होते हैं। एक साल में दो बार हम इन व्रत के दौरान अपने तन, मन और आत्मा की शुद्धि करते हैं।

वैज्ञानिक दृष्टि से देखें तो, शारदीय नवरात्र और चैत्र नवरात्र इन दो नवरात्रों के दौरान ऋतु परिवर्तन होता है। न ज़्यादा ठंड होती है और न ही ज़्यादा गर्मी! इस दौरान कई संक्रामक रोग भी हो सकते हैं। अतः इस ऋतु परिवर्तन के हिसाब से स्वयं को ढालने हेतु नौ दिन का व्रत रखा जाता है, दूध और फलों का सेवन किया जाता है ताकि शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ सकें और रोगों से हमारी रक्षा हो सकें।

व्रत की सर्वमान्य परिभाषा है, ‘संकल्पपूर्वक किये गए कर्म को व्रत कहते हैं।’

गाँधीजी ने भी उपवास को “दृढ़ इच्छाशक्ति का प्रतीक माना है। वे कहते हैं कि, जिसकी इच्छाशक्ति दृढ़ होगी वही उपवास रख पाएगा।”

हिंदु परंपरा में हर त्योहार, हर व्रत रखने के पीछे कोई न कोई ऐतिहासिक महत्व या कारण होता है। ऐसे ही नवरात्रों पे रखे जाने वाले इन व्रतों के पीछे भी कई पौराणिक कथाएं प्रचलित है-

 

पुराणों में उल्लेख मिलता है कि, स्वयं ब्रह्मदेव ने मां के नवरात्रों की महिमा बृहस्पति देव को बताते हुए उस ब्राह्मण पुत्री के बारे में कथा सुनाई थी जिसने सबसे पहले देवी दुर्गा के नवरात्र का उपवास रखा था।

साथ ही यह उल्लेख भी मिलता है कि, मां आदिशक्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने हेतु स्वयं देवताओं ने भी नवरात्र के व्रत किए थे।स्वर्गलोक के राजा देवराज इंद्र ने राक्षस वृत्रासुर का वध करने के लिए मां दुर्गा की पूजा अर्चना की और नवरात्रि के व्रत रखे। जग के पालनकर्ता भगवान विष्णु ने मधु नाम के असुर का वध करने के लिए नवरात्र का व्रत किया।

रावण का वध करने के लिए भगवान श्रीराम ने भी आश्विन नवरात्र का व्रत किया था।

महाभारत में कौरवों पर विजय पाने के लिए पांडवों द्वारा देवी का व्रत करने का उल्लेख मिलता है।

देवी भागवत पुराण में राजा सुरथ की कथा मिलती है, जिन्हें नवरात्रि के व्रत रखने से अपना खोया हुआ राज्य और वैभव फिर से प्राप्त हुआ।

लेकिन फिर भी अलग-अलग पुराणों में इन व्रतों को लेकर अलग-अलग कथाएं प्रचलित है।

देवदत्त पटनायक सच ही कहते हैं-

“अनंत पुराणों में छिपा है सनातन सत्य
इसे पूर्णतः किसने देखा
वरुण के है नयन हज़ार
इंद्र के सौ
आपके और मेरे केवल दो।”

kyu rakha jata hai navratro me vrat

 

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