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महीनों में सर्वश्रेष्ठ मास : कार्तिक मास

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न कार्तिकसमो मासः न देवः केशवात्परः । न वेदसदृशं शास्त्रं न तीर्थं गङ्गया समम् ।।”

अर्थात्- कार्तिक मास के समान कोई मास नहीं है, श्रीविष्णु से बढ़कर कोई देवता नहीं है, वेद के तुल्य कोई शास्त्र नहीं है और गंगा के समान कोई तीर्थ नहीं है।

कार्तिक मास पुण्य अर्जन का मास है, यह व्रत-पर्वों तथा महोत्सवों द्वारा भगवान की आराधना का मास है। यम-नियम, संयम, भगवत कथा तथा वार्ता-श्रवण का मास है, यह व्रतियों तथा साधकों के लिए विशेष उपासना का मास है।

हिंदू कैंलेडर में, कार्तिक माह को आठवां महीना माना गया है। कार्तिक मास का हिंदू धर्म में विशेष धार्मिक महत्व बताया गया है। यह मास भगवान विष्णु और मां लक्ष्मी का अत्यंत प्रिय माह होता है। इसी महीने भगवान विष्णु योग निद्रा से जागते हैं तथा सृष्टि में असीम आनंद और कृपा की वर्षा होती है। मां लक्ष्मी भी इसी माह धरती पर भ्रमण करने उतरती हैं और भक्तों को अपार धन का आशीर्वाद देती हैं।

कार्तिक माह को शास्त्रों में ‘पुण्य माह’ कहा गया है। इस माह में जितने भी पुण्य कार्य किये जाते हैं उनका विशेष महत्व बताया गया है, इस माह में प्रातः तारों की छांव में स्नान का भी अत्यधिक महत्व है। ‘पद्मपुराण’ तथा ‘विष्णु रहस्य’ में भी कार्तिक स्नान के बारे में बताया गया है।

सामान्य दिनों में एक हजार बार तथा प्रयाग में कुम्भ के दौरान गंगा स्नान करने से जो फल प्राप्त होता है वही फल कार्तिक माह में सूर्योदय से पूर्व किसी भी नदी में स्नान करने मात्र से प्राप्त हो जाता है। शास्त्रों के अनुसार, कार्तिक माह के स्नान की शुरुआत शरद पूर्णिमा से होती है और इसका समापन कार्तिक पूर्णिमा को होता है। इस माह भगवान विष्णु जल के अंदर निवास करते हैं इसलिए इस महीने में किसी भी नदी एवं तालाब में स्नान करने से भगवान विष्णु की पूजा और साक्षात्कार का पुण्यलाभ प्राप्त होता है।

इस माह में कुछ मादक वस्तुओं जैसे- लहसुन, प्याज आदि का सेवन नहीं करना चाहिए। यदि आप पूरे माह नदियों में स्नान न भी कर पाए, तो कार्तिक शुक्ल की तेरस, चौदस एवं पूर्णिमा को स्नान अवश्य करें। कार्तिक माह में दीपदान के साथ ही अन्न, वस्त्र ब्राह्मण को दान करना चाहिए, इससे स्वर्ग की प्राप्ति होती है। गुरु दीक्षा लेने के लिए भी यह माह महत्वपूर्ण है। कार्तिक माह में विशिष्ट पर्वों के रूप में धनतेरस, नरक चतुर्दशी, हनुमान पूजा, दीपावली, लक्ष्मी पूजन, यम पूजन, भगिनी ग्रह भोजन, भीष्मक पंचव्रत, विष्णु प्रबोधोत्सव तथा तुलसी विवाह, वैकुंठ चतुर्दशी आते हैं। इन्हें विधि-विधान से मनाना चाहिए।

वैसे तो तुलसी की पूजा पूरे साल करना अच्‍छा माना जाता है। लेकिन कार्तिक मास में तुलसी की पूजा का विशेष महत्व है। कहते हैं, कार्तिक मास में तुलसी की पूजा करने से अकाल मृत्‍यु की आशंका कम हो जाती है। वहीं कार्तिक मास में तुलसी और शालिग्राम के विवाह की भी परंपरा चली आ रही है। भारत के कुछ राज्यों में कार्तिक मास की ‘देवप्रबोधिनी एकादशी’ के दिन ‘तुलसी विवाह’ भी कराया जाता है। इस दिन विष्णुजी को 4 माह की निद्रा से जगाने हेतु उनके शालिग्राम रूप से माँ तुलसी का विवाह कराया जाता है। कार्तिक मास में एक महीने लगातार तुलसी के नीचे दीपक जलाने से परम पुण्‍य की प्राप्ति होती है और हमारे जीवन में सुख शांति स्‍थापित होती है।

शास्त्रों में कार्तिक मास को बहुत पवित्र माना गया है तथा इसे ‘मोक्ष का द्वार’ कहकर संबोधित किया है। कार्तिक मास की प्रत्येक तिथि में कोई न कोई पर्व-उत्सव मनाया जाता है। दीपों का पर्व दीपावली भी इसी मास का उत्सव है, यह मास हमारे जीवन के अंधकार को दूरकर हमें प्रकाश की ओर ले जाने की प्रेरणा देता है।

“रोगापहं पातकनाशकृत्परं सद्बुद्धिदं पुत्रधनादिसाधकम्। मुक्तेर्निदांन नहि कार्तिकव्रताद् विष्णुप्रियादन्यदिहास्ति भूतले।।”

अर्थात– कार्तिक मास आरोग्य प्रदान करने वाला, रोगविनाशक, सद्बुद्धि प्रदान करने वाला तथा मां लक्ष्मी की साधना के लिए सर्वोत्तम है।

Mahino mei swarsheth maas: kartik maas

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