Indian Classical Dances: भारतीय संस्कृति में नृत्य की जड़े हमेशा से ही यहां की परंपराओं से जुड़ी रही है। भारत में नृत्य केवल मनोरंजन नहीं बल्कि भावों की शास्त्रीय अभिव्यक्ति रही है। शायद इसलिए तो ही भारतीय उपमहाद्वीप में समय-समय पर नृत्यों की अलग विधाओं ने जन्म लिया है। यहां पर पनपे इन विभिन्न विधाओं ने विशिष्ट समय और वातावरण के साथ आकार लिया है। हमारे देश भारत में जैसे रंगों की कमी नहीं है, बोली की कमी नहीं है, उसी प्रकार यहां पर हर एक क्षेत्र विशेष की अपनी एक अलग विधा रही है। आज हम आपको भारत की फुलवारी से चुने उन शास्त्रीय नृत्यों से अवगत करवाएंगे, जिन्हें हजारों सालों से अभिव्यक्ति के माध्यम के रूप में उपयोग किया जाता रहा है।
भरतनाट्यम्
भारत नाट्यम्, भारत के उन शास्त्रीय नृत्यों में से एक है, जिन्हें पूरे विश्व में भारत की पहचान के रूप में देखा जाता है। वैसे तो क्षेत्रीय आधार पर इसका भौगोलिक संबंध भारत के दक्षिणी राज्य तमिलनाडु से है। लेकिन अगर आप इसके नाम का विच्छेदन करेंगे तो आपको इसमें “भरत” शब्द दिख जाएगा। इस नृत्य को लेकर ऐसी मान्यता है कि त्रिदेवों में श्रेष्ठ ब्रह्मा ने इंद्र के अनुनय-विनय पर नृत्य वेद सृजित किया। ब्रह्मा ने इस वेद की रचना के लिए भारतीय संस्कृति का आधार हमारे चारों वेदों अर्थात ऋगवेद, सामवेद, अथर्ववेद, यजुर्वेद का सार लिया और फिर नवसृजित नृत्य वेद को राजा भरत को सौंप दिया।
भरतनाट्यम में मौलिक तौर पर तीन मूलभूत तत्वों अर्थात भाव, राग और ताल को शामिल किया गया है। इस नृत्य में मुख्यतौर पर शारीरिक भाव भंगिमा के लिए अथवा शरीर संचालन के लिए 64 सिद्धांत हैं। इतना ही नहीं भरतनाट्यम् में जीवन के मूल तत्व- दर्शन, धर्म और विज्ञान तीनों को समाहित किया गया है। वैसे तो भरतनाट्यम् तुलनात्मक रूप नव-सृजित नाम है, इससे पहले इसे सादिर, दासीअट्टम और तंजाबूरनाट्यम् के नामों से पुकारा जाता था। इस नृत्य की प्रस्तुति से देश के कई नामचीन व्यक्तित्वों के नाम जुड़े हैं, जैसे मृणालिनी साराभाई, बैजयंतीमाला, मालविका सरकार, सोनल मान सिंह, रूक्मिणी देवी अरुण्डेल आदि।
कथकली
कथकली का संबंध भी भारत के दक्षिणी हिस्से अर्थात केरल से है। इसमें नृत्य के माध्यम से कथाओं को नाट्य रूप में प्रस्तुत करने की विधा है। इन कथाओं का आधार मुख्यतः रामायण, महाभारत और अन्य पुराण होते हैं। यह एक रंग बिरंगा नृत्य है। इस नृत्य में पात्रों की सजावटों के हिसाब से सांकेतिक चित्रण होता है। इस नृत्य की खासियत है कि इसमें मानव, देवता, या दैत्य सभी का प्रदर्शन शानदार वेशभूषा के माध्यम से की जाती है। कथकली में हाव-भाव की बहुत प्रधानता है। मानो कलाकार की हर एक भाव अपने में कई शब्दों को ब्यान कर रहा हो। कलाकारों के भंवों की गति, नेत्रों का संचालन के साथ-साथ ठोडी की अभिव्यक्ति पर बारिकी से काम किया जाता है।
कथक
कथक का संबंध मुख्यतौर पर भारत के उत्तरी हिस्से से है। इस नृत्य में घुंघरूओं को पैरों में बांध कर हिन्दू धार्मिक कथाओं का नाटकीय प्रस्तुतीकरण किया जाता है। कथक की इस शैली का जन्म ब्राह्मण पुजारियों के द्वारा किया गया है। इस नृत्य में कथा कहने की शैली समय के विकसित होकर नृत्य के रूप में बदल गई। इतना ही नहीं मुगलों के शासन में इस नृत्य को शाही दरबारों में भी प्रस्तुत किया जाता था। हालांकि कथक में धर्म के स्थान पर सौंदर्य बोध को अधिक बल दिया गया है।
ओड़िसी
ओडिसी नृत्य का संबंध मुख्य तौर पर ओड़ीसा के मंदिरों में नृत्य करने वाली देवदासियों से है। कहा तो यह भी जाता है कि यह सबसे पुराने नृत्यों में से एक है। इसके बारे में पुरातन शिलालेखों में देखा जाता है, चाहे वह ब्रह्मेश्वर मंदिर का शिला लेख हो या कोणार्क के सूर्य मंदिर का केंद्रीय कक्ष। इस नृत्य को एक मंडली के रूप में प्रस्तुत किया जाता है, जिसमें शरीर की विभिन्न भंगिमाओं का उपयोग करते हुए बहुत सारे सजावटी पैटर्न बनाए जाते हैं। इस नृत्य में मुख्य तौर पर त्रिभंग नुमा शारीरिक आकार बनाया जाता है, जो कि इसकी खासियत है।
मणिपुरी
मणिपुरी भारत के उन पुरातन शास्त्रीय नृत्यों में से एक जिसे पूरे विश्व में मान प्राप्त है। इस नृत्य में आपको शरीर की धीमी गति, सांकेतिक भव्यता और मनमोहक भुजाओं की गति देखने को मिल जाएगी। जानकार बताते हैं कि मणिपुरी नृत्य की शुरूआत जादुई नृत्य के रूप में हुई। यह भारतीय संस्कृति के वैष्णव संप्रदाय के साथ विकसित हुआ।
मणिपुर में एक जनजाति है मेतई, जिसमें बताया जाता है कि जब इस पृथ्वी का निर्माण हुआ तो यह एक पिंड के समान गोल था। फिर इस पर नृत्य कर इसे बड़ी ही कोमलता से रहने योग्य बनाया गया। इसलिए मैतई जनजाति नृत्यों को तेजी से न कर, अपने कदम धीमी गति से रखने में विश्वास करते हैं।
सत्तरिया नृत्य
सत्तरिया नृत्य का संबंध असम से है। साल 2000 में इसे भारत के शास्त्रीय नृत्यों में शामिल किया गया। जानकार बताते हैं कि इस नृत्य की स्थापना महान संत शंकरदेव ने की थी। उन्होंने इस नृत्य को अंकिया नाट से तैयार की थी। यह नृत्य नाटक को तौर पर ब्रह्मचारी भिक्षुओं द्वारा अभ्यास किया जाता है। हालांकि सत्तरिया नृत्य को पहले केवल पुरूषों द्वारा ही प्रदर्शित किया जाता था लेकिन इसे अब महिलाओं द्वारा भी प्रस्तुत किया जाता है।